दिवास्वप्न मत देखो

 
दिवास्वप्न मत देखो

अमावस की कालिमा में,
शशिकला की निःशब्द छवि ढूँढने का प्रयास,
व्यग्र कर रहा मुझे,
क्योंकर मैं अनिश्चितता के भँवर में फँसा,
निश्चितता को खँगाल रहा हूँ?
क्या यह दिवास्वप्न,
सच्चाई की सँचिका में  ढल पायेगा?

        मरुभूमि की रेतीली पृष्ठभूमि पर,
        हरियाली की तलाश में खडा,
        क्या मरीचिका के भँवर में फँसा रहूँगा?
        क्या तरु और जल
        मरुभूमि के अस्तित्व को झुठलाएँगे?
        सोचता हूँ ये दिवास्वप्न नहीं तो और क्या है?

सागरतट पर सीप और मोतियों के बीच,
खारे जल में नमक के ढेर में,
विचलित खयालों में मृदु जल की,
तलाश करता मैं,
क्या अपनी पिपासा तृप्त कर पाउँगा?
तृप्ति का विचार,
दिवास्वप्न की मधुरिमा नहीं तो और क्या है ?

        जीवनके मँझधार में फँसा,
        जीवन की सत्यता झाँकने की जिजिविष,
        क्या मुझे तट के दर्शन करा पायेगी?
        क्या मैं मंजिल के चिर आकाश में,
        भ्रमण कर पाउँगा?
        या यूँ ही मँझधार में फँसा,
        दिवास्वप्न के सागर में गोते लगा पाउँगा?

अमावस की कालिमा,
मरुभुमि की मरिचिका,
सागरतट का सीप,
और जीवन का सच,
अहसास कराते हैं,
दिवास्वप्न मत देखो ।

        एक अदम्य साहस के साथ,
        स्वप्न को सच्चाई की
        ईटों में ढालो
        निर्माण करो नवकेतन का,
        दिवास्वप्न को साकार करो ।

Comments

Popular Posts