आम बनाम ख़ास



घटना शायद २०१३ -१४ की रही होगी | जब आम आदमी पार्टी भारत के राजनीतिक पटल पर आगमन कर चुकी थी और अपने पहले चुनावी संघर्ष में ही पार्टी ने जबरदस्त प्रदर्शन करते हुए दिल्ली विधानसभा की लगभग आधी सीटों पर अपनी जीत का परचम लहराया था |  

यह वो दौर भी था जब अन्ना आंदोलन से प्रभावित हो मैंने इस पार्टी में राजनितिक बदलाव की गंभीरता को महसूस किया था और अपनी कल्पनाओं में ईमानदार, स्वच्छ एवं बदली हुई भारतीय राजनीती की तस्वीर को उकेर लिया था | लेकिन विधानसभा चुनाव के बाद सत्ता के लिए विरोधी विचारधारा की पार्टी से गठबंधन करने पर पार्टी की भविष्य की नीतियों एवं विचारधाराओं को लेकर शंकित भी था| 

उस समय हमारे कार्यालय में एक साप्ताहिक गोष्ठी हुआ करती थी जिसमें हर सदस्य स्वछंद रूप से अपने विचारों को साझा कर सकता था| यह बहुत खुला मंच हुआ करता था जिसमें आप कला, संस्कृति, संगीत, राजनीति, विज्ञान, साहित्य, चिकित्सा, जैसे किसी भी विषय पर अपने विचार बिना किसी लाग लपेट के रख सकते थे| 

इन्हीं गोष्ठियों में से एक में, मैंने स्वच्छ एवं ईमानदार राजनीती की धुंधली होती तस्वीरों से निराश हो, आम आदमी बनाम खास आदमी के विषय को चुना | मेरी राय थी कि आम आदमी पार्टी ने "आम आदमी" शब्द का अतिक्रमण कर लिया है और यह शब्द अब खास आदमियों के लिए ही रह गया है | आम आदमी जो वाकई आम है जो पहले से ही हाशिये पर है और अपने मौलिक अधिकारों के उपयोग के लिए भी किसी खास के रहमोकरम पर निर्भर है, अब इस शब्द से भी हाथ धो चुका है | मैंने ऐसे ही कितने तर्क दिए और यह जताने की कोशिश की हम और आप जैसे आम आदमी जो आय के विभाजन में मध्यम एवं निम्न वर्ग स्तर पर हैं, वो कितनी निराशाजनक स्थिति में हैं | ये वक्तवय आम आदमी के लिए मेरी हताशा और निराशा को जाहिर कर रहे थे| 

मेरे एक वरिष्ठ सहयोगी जिनका कार्यालयी अनुभव शायद मेरी तत्कालीन उम्र से भी ज्यादा रहा होगा, उन्होंने वस्तुस्थिति को समझते हुए ऐसे तर्क दिए जो मेरी ज़िन्दगी के लिए सबक बन गए |  उनके शब्दों में - 

हम सब खास हैं | अगर आपको समझना है कि आप कितने खास हैं तो ये बात आप अपने परिवार वालों से पूछें| आपके परिवार की ज़रूरतें कोई राजनीतिक पार्टी पूरी नहीं करेगी | आपके परिवार का पेट कोई बाहरी नहीं भरेगा | आपके परिवार के रोटी, कपडा और मकान जैसी मूलभूत आवश्यकताएं कोई दूसरा पूरी नहीं करेगा | आपके बच्चे को जब खिलौने चाहिए होंगे तो उनकी उम्मीद भरी नज़रें अपने माता पिता की तरफ ही उठेंगी | आप जब काम से थके शाम को जब घर पहुंचते हैं और आपकी राह देखता बच्चा जब दौड़ता हुआ आपसे लिपटता है तो आपको आपके खास होने का एहसास होता है | जब आप अपने माता / पिता / पति / पत्नी / भाई / बहन के लिए कुछ करते हैं और उनके चेहरे पर ख़ुशी आती है तब आपको अपने खास होने का एहसास होता है | आपका लिया कोई कदम अगर आपके किसी सम्बन्धी को सुकून के पल दिलाता है तो आपको अपने ख़ास होने का एहसास होता है| 

भले ही आप समाज के किसी भी तबके से ताल्लुक रखते हों, आप भौतिक अमीरी के सबसे निचले पायदान पर हों, समाज आपको किसी नज़रिये से देखे,  लेकिन आपके परिवार के लिए, आपके बच्चों के लिए आपसे खास कोई नहीं | भले ही आपके बच्चे किसी सिने अभिनेता की फिल्मों को देख कितनीं भी सीटियाँ बजा लें, किसी क्रिकेटर की पोस्टरों से दीवालें पाट लें, लेकिन उनकी निबंधों में उनके आदर्श आप ही होंगे |  जब उनसे उनके प्रेरणास्रोत के बारे में पूछा जायेगा तो वो गर्व के साथ बोलेंगे "मेरे पिता - मेरे आदर्श", "मेरी माँ - रॉकस्टार" | 

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