एक छोटी सी मुस्कान

एक हँसता खिलखिलाता चेहरा किसे अच्छा नहीं लगता, पर आज के भौतिक वातावरण में हम इतने लीन हो गए हैं कि जीवन के छोटे छोटे रहस्यों को भूल से गए हैं । एक तो हमने मानवीय रिश्तों में दूरियाँ बना ली हैं तो दूसरी ओर मानव निर्मित वस्तुओं से रिश्ते बना लिए हैं, जिनमें मानवीय संवेदना नहीं होती है । ऐसे समय में हमें एक छोटी सी मुस्कान का महत्व और भी बढ़ जाता है ।                                              

                                                   एक छोटी सी मुस्कान 

एक छोटी सी मुस्कान,
ज़मी नब्ज़ को पिघला सकती है,
रूह को अपने होने का अहसास दिला सकती है,
पत्थर की बुत में भी जान ला सकती है,
रूठे को मना सकती है,
रिश्ते को और मज़बूत बना सकती है ।
       
              पर हमने खींच ली है एक लकीर होठों पर,
              मुस्कराने की पाबंदियों के साथ ।
              मुस्कराना ये नहीं कि,
              हम हँसे सिर्फ होठों से,
              मुस्कराना तो ये है कि, जब खुले ये होंठ,
              गुफ्तगू करें ये आँखें, खिलखिलाकर आँखों से,
              दिल भी ले उनके मज़े, दिल के किनारे खोलकर ।

हम प्यार और मोहब्बत की  बातें करते हैं,
एक दूसरे पर मरने की बातें करते हैं,
पर रिश्तों में न होती मुस्कान,
हाथों में हाथ डाल चल लेते दो कदम,
पर ये दो कदम लगते वर्षों के समान,
क्योकिं रिश्तों में न होती मुस्कान ।
         
              कभी अपने दिल को टटोलो,
             सोचो अंतिम बार कब हँसा था,
             दिल की गहराइयों तक,
             कब हँसा था खुद के लिए, झूठी ठिठोली से उठकर,
             जवाब आएगा याद नहीं,
             यादों को और पीछे ले जाओ,
             तब भी मिलेंगे खाली पन्ने ज़िन्दगी के,
             लेकिन तब तक आ चुकी रहेगी चेहरे पर,
             एक छोटी सी मुस्कान, बयान करती एक सच्चाई,
            आप हँसना नहीं भूले हैं, बस उसकी कला भूल गए हैं । 

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