तुम कौन हो

तुम कौन हो

कुछ रचनाएँ पन्नों के बीच यूँ ही दब कर रह जाती हैं जैसे वो कभी लिखी ही नहीं गयी हों और अपने वज़ूद की गुहार लगाते हुए अपने वक़्त का इंतज़ार कर रही हों | यह रचना उन्हीं रचनाओं में एक है जो पिछले ३-४ सालों से मसौदे (ड्राफ्ट) में रहकर प्रकाशित होने का इंतज़ार कर रही थी |

यह एक जुगलबंदी है दो अनजानों की, जो एक दूसरे को जानते भी हैं और नहीं भी | हाँ लेकिन उनकी रचनाएं एक दूसरे को ज़रूर जानती हैं और शायद इसीलिए ये गुफ्तगू उनकी नहीं उनके रचनाओं की हैं | 

१ - आज मन में उठा है एक सवाल,
तुम कौन हो,
आसमान में उड़ती पतंग,
या नदी में गोते खाती सुनहरी मछली ।

२ - पतंग की डोर हो, या उड़ता  हुआ एक सतरंगी छोर,
मीन के तुम नैन हो, या स्वप्न चुराते चितचोर।
पता नही तुम कौन हो, तुम मैं हो या तुम हो ।
तुम दिन हो या रात हो, या अनपढ़ी ज़ज़्बात हो,
सवाल अब उठते हैं, तुम कौन हो, तुम कौन हो।

१ - क्यों बदल गया है समां, क्यों है ये बेचैनी,
क्यों बंधी है एक अनजानी डोर,
जो ले जा रही है मुझे अनजानी ओर, खुद की खोज में ही निकली थी,
पर अब ये भी गयी हूँ भूल, की कौन हो तुम, तुम कौन हो ।

२ - तुम प्रेम का एक गीत हो या छद्म संगीत हो,
तबले की एक ताल हो या नर्तकी  की चाल हो,
ज्ञान बुद्ध प्रबोधिनी हो या स्वयं मुग्ध मोहिनी हो,
मन की एक तार हो या मधुर झंकार हो,
सोच के तुम पार हो या सोच की तुम सार हो,
खुद ही बता दो कौन हो,
तुम कौन हो, तुम कौन हो।

१ - शायद हो एक अहसास तुम,
जिसे मुश्किल है करना बयां, शायद हो एक सपना नया,
जिसे पूरा करना है मेरा अरमान,
या हो कोई पहेली अनसुलझी , हज़ारों गुथ्थियों में जवाब है जिसके दरम्यान ।

२ - सवालों के जवाब हो तुम, गुथ्थियों के सुलझे राज हो तुम,
चाहतों के सपनों में, अंत का आगाज़ हो तुम,
एहसास तुम, अंदाज़ तुम,
हसी तुम, ख़ुशी तुम,
सोच की एक लकीर में टेढ़ी सी मुस्कान तुम,
क्या बताऊँ कौन हो, तुम कौन हो, तुम कौन हो ।

१ - तुम कौन हो हम जान ना पाये शायद,
पर्दा इस राज़ का कभी उठा न पाएं,
पर जो भी हो, हमारे जीने की वजह हो शायद।
हमारे जीने की वजह हो शायद ।









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